आलमे बरज़ख के बारे में अकीदा | Aalme Barzakh Ke Bare Me Kaisa Aqeeda Rakhna Chahiye ?

Azhar Alimi
26 Nov 2023

आलमे बरज़ख के बारे में अकीदा | Aalme Barzakh Ke Bare Me Kaisa Aqeeda Rakhna Chahiye ?

दुनिया और आखिरत के दरमियान एक और आलम (दुनिया) है जिसको बर्ज़ख कहते हैं। मरने के बाद और कियामत से पहले तमाम इंसो-जिन्न को उसमें रहना होता है। 

  • बर्ज़ख में किसी को आराम है और किसी की तक्लीफ। 
  •  हर शख़्स की जितनी ज़िंदगी मुर्कार है, उस में न ज़्यादती हो सकती है न कमी। जब जिंदगी का वक़्त पूरा हो जाता है उस वक़्त हज़रते इज़ाईल रूह कब्ज़ कर लेते हैं। 
  •  मरने के बाद भी रूह और बदन का तअल्लुक बाकी रहता है, अगर्चे रूह बदन से जुदा रहती है। 
  • जिस तरह दुनिया में आसाइशें बदन पर वारिद होती हैं, मगर राहत व लज़्ज़त रूह को पहुंचती है, तक्लीफ बदन पर वारिद होती है, मगर अज़िय्यत (तक्लीफ) रूह को भी पहुंचती है। इसी तरह आलमे बर्ज़ख में भी होगा।
  •  मरने के बाद मुसलमानों की रूह अपने मर्तबा के मुताबिक मुख्तलिफ मक़ामों में रहती है। बाज़ की कब्र पर, बाज़ की ज़म जम शरीफ के कुंएं में, बाज़ की आसमानो-ज़मीन के दरमियान, बाज़ की पहले या दूसरे या सात्वें आसमानों पर, बाज़ की आसमानों से भी बुलंद, बाज की अर्श के नीचे किन्दीलों में और बाज़ की आला इल्लियीन में। (आला इल्लिय्यीन जन्नत के सबसे बुलंद व बाला दर्जे का नाम है) 
  •  रूह कहीं भी हो, अपने जिस्म से उसका बदस्तूर तअल्लुक रहता है। जो कोई कब्र पर आए, उसे देखती, पहचानती और उसकी बात सुनती है। 
  •  काफिरों की रूहें अपने मर्तबों के मुताबिक उनके मरघट या कब्र पर रहती हैं, बाज़ की चाहे बरहूत में जो कि यमन में एक नाला है, बाज की पहली, बाज़ की दूसरी, सात्वीं ज़मीन तक, बाज़ की उसके भी नीचे सिज्जीन में। (सिज्जीन दोज़ख की एक घाटी है)। 
  •  काफिरों की रूहें कहीं भी हों जो उसकी कब्र या मरघट पर गुज़रे उसे देखती, पहचानती और बात सुनती हैं, मगर कहीं जाने आने का इख़्तियार नहीं कि कैद हैं। 
  •  यह ख़्याल कि वो रूह किसी दूसरे बदन में चली जाती है, ख़्वाह वो आदमी का बदन हो या किसी और जानवर का, जिसको तनासुख और आवा गवन कहते हैं, महेज़ बातिल और उसका मानना कुफ है। (तनासुख यानी एक सूरत से दूसरी सूरत इख़्तियार करना, आवा गवन, हिन्दुओं के अकीदे के मुताबिक बार-बार मरने और जीने का सिलसिला) 
  • मौत का मञ्ना रूह का जिस्म से जुदा हो जाना है, रूह मरती नहीं, जो रूह को फना माने बद मज़हब है। 
  •  जब लोग मुर्दे को दफन करके वापस लौटते हैं, उस वक़्त उसके पास निहायत ही हैबत नाक दो फरिश्ते आते हैं, उनमें एक का नाम मुनकर और दूसरे का नाम नकीर है। मुर्दे को झड़क कर निहायत ही सख्ती के साथ उठाते हैं और कड़क आवाज़ में तीन सवालात करते हैं। 

कब्र के सवालात | Qabr Ke Sawaalat 

  • ☆ पहला सवालः (तेरा रब कौन है?)
  •  दूसरा सवालः (तेरा दीन क्या है?)
  •  तीसरा सवालः مَاكُنتَ تَقُوْلُ فِى هَذا الرَّجُلٍ؟ )इनके बारे में तू क्या कहता था?)
  •   मुर्दा अगर मुसलमान है तो पहले सवाल का जवाब देगाःرَبى اللَّہ )मेरारब अल्लाह है) और दूसरे का जवाब देगाः (मेरा दीन इस्लाम है) और तीसरे सवाल के जवाब में कहेगा :هُو محمد رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّه عليه وسلم ये तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हैं।) * उस वक़्त आसमान से एक पुकारने वाला पुकारेगा कि मेरे बन्दे ने सच कहा, उसके लिये जन्नत का बिछौना बिछाओं, उसे जन्नत का लिवास पहनाओ और उसके लिये जन्नत की तरफ दरवाज़ा खोल दो, जन्नत की हवा और खुश्बू उसकी तरफ आती रहेगी और जहां तक उसकी निगाह पहुंचेगी वहां तक उसकी कब्र कुशादा कर दी जायेगी और उससे कहा जायेगा कि सो जा, जिस तरह दुल्हा सोता है। 
  •  काफिर सवालों का जवाब न दे सकेगा और कहेगा: هَاهُ هَاهُ لَا أَدرِى كُمْتُ أَسْمَعُ النَّاس فَاقُوْلُ )अफ्सोस मुझे तो कुछ मालूम नहीं, मैं लोगों को कहते सुनता था, खुद भी कहता था।) *उस वक़्त एक पुकारने वाला आसमान से पुकारेगा कि यह झूठा है, इसके लिये आग का बिछौना बिछाओ और इसको आग का लिबास पहनाओ और जहन्नम की तरफ एक दरवाज़ा खोल दो और फिर उस पर तरह तरह का अज़ाब होगा।

 

  •  कब्र का अज़ाब जिस्म और रूह दोनों पर होता है। जिस्म अगर्चे जल जाए, गल जाए मगर उसके असली अज्ज़ा (जोकि रीढ़ की हड्डी में निहायत ही बारीक होते हैं जिन्हें खुर्दबीन से भी नहीं देखा जा सकता) कियामत तक बाकी रहेंगे, उन्हीं पर अज़ाब व सवाब मुरत्तब होंगे और क़ियामत के दिन उन्हीं के ज़रिये दोबारा अल्लाह अपनी कुद्रते कामिला से पहले की तरह जिस्म बनाएगा और उसमें दोबरा रूह लौटाई जायेगी। 
  •  मुर्दा अगर कब्र में दफन न किया जाए तो जहां पड़ा रह गया, फेंक दिया गया, गरज़ कहीं हो उससे वहीं सवालात होंगे और वहीं अज़ाब व  सवाब पहुंचेगा। 
  •  अंबिया और औलियाए किराम, उलमाए दीन, शुहदा, हाफिज कुरआन जोकि कुरआन के अहकाम पर अमल करते हों, वो जिसने कभी अल्लाह ताला की नाफरमानी न की हो और वो लोग जोकि दुरूद शरीफ की कस्रत करते हैं, उनके बदन को मिट्टी नहीं खा सकती। 
  •  जो शख़्स अंबियाए किराम की शान में यह खबीस कलिमा कहे (मआज़ल्लाह) वो मर के मिट्टी में मिल गए, गुमराह, बद दीन,