Ham Aksriyat Dekhte Hain Shariayt Nahi ? 1 ने कहा हम अक्सरियत देखते हैं शरीअत नहीं देखते
क्या फरमाते हैं ओलमाये दीन व मुफ्तीयाने किराम इस मसला में की मदरसा के कमेटी के सदर से एक शख्स ने कहा की शरीअत का ख्याल कीजिए इस पर उसने ने कहा हम अक्सरियत देखते हैं शरीअत नहीं देखते उसके बारे में क्या हुक्म है क्या वो दीनी मदरसा के सदारत के लायक है या नहीं और जो लोग उसकी मुआफ़कत करते हैं उनके लिए क्या हुक्म है?
जवाब :
शरीअत के मुकाबले में अक्सरियत देखने वाला और शरीयत को पीछे डालने वाला गुमराह है बल्कि बज उलमा के नजदीक ऐसा कहना कुफ्र है।
बहारे शरीअत हिस्सा न 9 सफा 172 पर है की किसी शख्श को शरीअत का हुक्म बताया कि इस मामले में यह हुक्म है उसने कहा हम शरीअत पर अमल नहीं करेंगे हम तो रस्म की पाबंदी करेंगे ऐसा कहना कुछ उलेमा के नजदीक कुफ्र है। ऐसे ही लोगों के बारे में हदीस शरीफ में है कि इनसे दूर रहो और उन्हें अपने करीब ना आने दो कहीं वह तुम्हें गुमराह ना कर दे कहीं वह तुम्हें फितना में ना डाल दें ( मुस्लिम जिल्द 1 सफा नंबर 10 ) ऐसा शख्श हरगिज़ सदारत के लायक नहीं उसको उस ओहदे से फौरन हटा दिया जाए और ऐसे शख्स को सदर मुंतखब किया जाए जो हर मामला में शरीअत को देखे। और जो लोग उसकी मदद कर रहे हैं वह सब गलती पर है उन पर लाजिम है की ऐसे शख्स का साथ हर हाल में छोड़ दे अगर वह ऐसा ना करें तो सब मुसलमान उनसे भी दूर रहे।
लिखने वाले : मुफ़्ती अब्दुल हमीद रज़वी मिस्बाही