इस्लामी साल का ये पहला महीना है जिस में जंग और किताल करना मना है . इसकी वजह इ तस्मिया ये है की ये लफ्ज़ कुउद से बना है | जिस के माना बैठना होता है . क्यंकि अरब के लोग इस महीने में जंग ओ किताल से बैठ जाते थे इसलिए इस महीना को जुल का'दा कहते हैं |
जुल का'दा के रोज़े | Zulqa'da ke Roze
हर महीना आयामे बीज यानि कमरी महीना के तेरा ,चौदा और पंद्रह में रोज़े रखना पूरी ज़िन्दगी रोज़ा रखने के बराबर शुमार किया जाता है | ( गुन्यतुत तलिबीन पेज ४९८ ) हमारे आका सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की जो शख्श जिल का'दा के महीने में १ दिन रोज़ा रखता है तो अल्लाह ताला उस के लिए हर लम्हा के बदले १ हज e मकबूल का सवाब अता फरमाता है . एक गुलाम आज़ाद करने का हुक्म अता फरमाता है | एक हदीस में है की जिल का'दा के महीने को बुजरुग जानो . क्यंकि हुरमत वाले महीनो में ये पहला महीना है | एक और हदीस में है की इस महीना के अन्दर एक लम्हा की इबादत हज़ार साल की इबादत से बेहतर है | और फ़रमाया की इस महीने में पीर के दिन रोज़ा रखना हज़ार साल की इबादत से अफज़ल और बेहतर है |
Zul Qa'da ke Nawafil | जुल का'दा की नफिल नमाज़ें
हदीस शरीफ में है की जुल का'दा की पहली रात में ४ रकात नफिल नमाज़ पढ़े और उसकी हर रकात में अलहम्दु शरीफ के बाद ३३ बार सुरह इखलास पढ़े तो उसके लिए जन्नत में अल्लाह ताला हज़ार मकान याकूत के बनाएगा | और हर माकन में जवाहिर के तख़्त होंगे | और तख़्त पर एक हूर बैठी होगी जिस की पेशानी सूरज से ज्यदा रोशन होगी | १ और रिवायत में है की जो आदमी इस महीना की हर रात में २ रकात नफिल पढ़े की हर रकात में अलहम्दु शरीफ के बाद सुरह ईखलास ३ बार पढ़े तो उसको हर रात में १ शहीद और एक हज का सवाब मिलता है | जो कोई इस महीना में हर जुमा को ४ रकत नफिल पढ़े और हर राकत में अलहम्दु शरीफ के बाद २१ बार सूरह इखलास पढ़े तो अल्लाह ताला उसके लिए हज और उमरा का सवाब मिलता है | इसी तरह से ये भी है की जो कोई जुल का'दा की जुमेरात के दिन इस महीने में १०० रकत पढ़े और हर रकात में अलहम्दु शरीफ के बाद १० बार सूरह इखलास पढ़े तो उसे बे इंतिहा सवाब मिलेगा |
Zul Qa'da की चाँद रात की नमाज़
माहे जिल का'दा की चाँद रात को ३० रकात १५ सलाम के साथ पढ़े , हर रकात में सुरह फातिहा के बाद सूरह ज़िल्ज़ाल एक बार पढ़े | सलाम के बाद सूरह नबा एक बार पढ़े | जुल का'दा की नौ तारिख को तरक्की दर्जात के लिए दुआ मांगे और २ रकात नफिल पढ़े और दोनों में सूरह फातिहा के बाद सुरह मुज़म्मिल पढ़े | और सलाम के बाद ३ बार सूरह यासीन का विरद करे . इसी तरह इस महीने के आखिर में चष्ट के बाद २ रकात नफिल पढ़े और रकात में सूरह कद्र ३ बार पढ़े \ फिर सालम के बाद 11 बार दुरूद शरीफ और 11 बार सूरह फातिहा पढ़ कर सजदा करे और सजदे में अल्लाह से दुआ मांगे तो जो भी मांगेगा अल्लाह कबूल फरमाएगा |
Zul Qa'da के वजीफे | Zul Qa'da ke wazife
(१) सूरह आले इमरान की दूसरी आयात ( अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल हय्यील कयूम ) रोजाना ६०० बार दिन में पढ़े ( ये वजीफा दिन में किसी भी वक़्त पढ़ सकते हैं ) (२) २ रक्कत सलातुल हाजत रोजाना रात को सोने से पहले पढ़े | बहुत फायदे हासिल होंगे . जो भी दिल में ख्वाहिश होगी इंशा अल्लाह वो सब पूरी होंगी | (३) दुरूदे खिजरी या कोई भी दुरूद दिन भर में आधा घनटा किसी भी वक़्त पढ़े | दुरूदे खिजरी ये है ( सल्लाहू अला हाबीबिही मुहमदिन व आलिहि व बारीक वासल्लिम ) ( ४ ) माहे जुल का'दा में ३ रोज़े रखें (५) पूरे महीने में रोजाना ईशा की नमाज़ के बाद २ रकात नफिल नमाज़ शुकराना पढ़े | हर रकात में सूरह फातिहा के बाद ३ बार सूरह इखलास पढ़े |